मेरी कॉपी

मुझे याद है कि कैसे तुमने मेरी क़ॉपी के पहले पन्ने पर
मेरे टेढे से मुंह की पिक्चर बनाई थी
और लाल स्याही से उस पर एक बड़ी सी हंसी आंकी थी

मुझे याद है कि कैसे तुम बीच वाले पन्ने से
कागज के प्लेन बनाया करती थी
पर फैन की तेज हवाएं अकसर उनका रुख मोड देती
और ये देखकर तुम्हारे चेहरे पर
अचानक एक अलग सी मुस्कान आ जाती

मुझे ये भी याद है कि कैसे हम पीछे वाली बेंच पर बैठकर
टीचर की नजर बचाकर
मेरे कॉपी के आखरी पन्ने पर
वह शब्दों वाला गेम खेला करते थे
और कैसे तुम हर बार मेरे शब्द गेस कर लेती थी
और मैं हर बार यही सोचता रहता
कि इन खाली जगहों पर कौन सा अक्षर लिखूं

कल बड़े अरसो बाद, क़ॉपी खोली तो पाया
कि जो फूल तु्म्हें देने के लिए लाया था
वह अब भी उन पन्नों में समटी हुई है
हां, थोड़ा सा मुरझा जरूर गया हैं...

जब पन्ने पलटें तो देखा
कि हंसी तो अब भी बरकरार है
पर वक्त के साथ उस लाल स्चाही का रंग
फीका पड़ गया है।