Posted by
anarchicanalogy
at
5:39 PM
बस कुछ अधूरे ख्वाब हैं
कुछ आधे लम्हें
कुछ अनकहे से जवाब भी हैं
जो पुकारते है तुम्हें
कुछ भूली हुई यादें हैं
कुछ अनलिखे से ख़त
एक आधी सी बोतल में
कैद है एक गुज़रा हुआ व़क्त
कुछ अधूरे गीत हैं
और एक अनसुनी सी धुन
तुम्हारे संग बिताएं हुए पल बिखरे हैं
और बिखरा हूं मैं भी
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