पाखंड

चेहरों पर चेहरे चिपकाएं घूमते है
जिस्म की बिसात पर
रिश्तों का खेल खेलते है

बेडरूम के बंद दरवाज़े को
जरा गौ़र से देखो
उतारे हुए कपड़ो के साथ
आत्मा भी लटकी है
चादरों के रेशमी तागों में
जिंदगी अटकी है

बिस्तर पर हर रात
एक नई चाल चलते है
चेहरों पर चेहरे चिपकाएं घूमते है

मुंह से निकलते धुएं को
ज़रा गौ़र से देखो
उस धुंधली सी धुंध में
कुछ सपने तर्श है
छल के इस महल में
न तो छत है,न ही फर्श है

रिश्तों के अलाव पर
सिगरेट जलते है
चेहरों पर चेहरे चिपकाएं घूमते है

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